पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने अवैध कब्जे की ज़मीन पर पौधारोपण को लेकर प्रशासन पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने पूछा कि जब गैर कानूनी ढंग से पौधे लगाए जा रहे थे, तो जिम्मेदार अधिकारी कहां थे?
शांता कुमार का सवाल: सेब के बागीचे लगते वक्त अधिकारी कहां थे?
पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री शांता कुमार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर की जा रही सेब के पेड़ों की कटाई पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि कोर्ट ने हिमाचल हाईकोर्ट को निर्देश दिए हैं कि सरकारी वन भूमि पर लगे अवैध सेब बागीचों को काटकर ज़मीन वापस ली जाए।
300 बीघा में चार हजार पेड़, वर्षों से अवैध कब्जा
शांता कुमार ने खुलासा किया कि हिमाचल के एक गांव में करीब 300 बीघा वन भूमि पर वर्षों पहले अवैध कब्जा कर 4000 सेब के पौधे लगाए गए थे। आज यह क्षेत्र एक शानदार बागीचे के रूप में विकसित हो चुका है। कोर्ट के आदेश पर अब वहां पेड़ काटे जा रहे हैं।
वर्षों तक चुप रही सरकार, अब पेड़ काटना कैसा समाधान?
उन्होंने कहा कि गैर कानूनी कब्जा एक दिन में नहीं हुआ। बागीचा लगाने और फल आने में कई साल लगे, लेकिन उस दौरान सरकार और उसके अधिकारी कहां थे? यह सवाल उठाते हुए शांता कुमार ने न्यायालय और प्रशासन दोनों की भूमिका पर सवाल खड़े किए।
“अधिकारियों पर क्यों नहीं मुकदमा?” – शांता कुमार
शांता कुमार ने न्यायपालिका से यह भी सवाल पूछा कि जब अदालत पेड़ों की कटाई का आदेश दे सकती है, तो उन अधिकारियों और कर्मचारियों पर भी कार्रवाई क्यों नहीं होती, जिन्होंने कब्जा होते समय आंखें मूंद ली थीं। उन्होंने सख्त सजा की मांग की।
“कुछ चांदी के सिक्कों में बिक गया ईमान”
पूर्व मुख्यमंत्री ने तीखे लहजे में कहा कि भ्रष्टाचार के कारण अधिकारी मौन रहे और कुछ चांदी के सिक्कों के बदले में ईमान बेचा गया। देशभर में ऐसे हजारों अवैध कब्जों के उदाहरण हैं जहां बाद में भवन बनाकर किराए पर दे दिए गए हैं।
सैंकड़ों पेड़ काटना पर्यावरण के साथ क्रूरता: राकेश सिंघा
वहीं माकपा के पूर्व विधायक राकेश सिंघा ने सरकार की कार्रवाई की आलोचना की। उन्होंने कहा कि एक साथ सैंकड़ों सेब के पेड़ काटना पर्यावरण के साथ बड़ा खिलवाड़ है। सरकार एक ओर हरियाली बचाने की बात करती है, दूसरी ओर उत्पादक पेड़ काट रही है।
संघ की नाराजगी, सरकार से कोर्ट में याचिका दायर करने की मांग
सेब उत्पादक संघ ने भी सरकार की कार्रवाई पर गहरी नाराजगी जताई और अपील की है कि सरकार हाई कोर्ट में याचिका दायर कर समाधान निकाले। संघ ने सुझाव दिया कि वन विभाग इन पेड़ों को अधिग्रहित कर खुद लाभ ले सकता था, बजाय पेड़ काटने के।