लाहौल-स्पीति में मानसून की मार, किसानों-बागवानों की फसलें संकट में!

लाहौल-स्पीति, 23 जुलाई 2025: हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिले लाहौल और स्पीति में चल रही मूसलाधार बारिश ने किसानों और बागवानों की नींद हराम कर दी है। मानसून का कहर अब फसलों पर साफ दिखने लगा है, जिससे लाखों रुपये के नुकसान की आशंका है और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ सकता है।

लाहौल घाटी में मटर और आलू की फसल खतरे में:

लाहौल घाटी, अपनी उच्च गुणवत्ता वाली मटर और ऑफ-सीजन आलू की फसल के लिए पूरे देश में मशहूर है। ये फसलें यहाँ के किसानों की आय का मुख्य स्रोत हैं। लेकिन पिछले कुछ दिनों से जारी लगातार बारिश ने खेतों में पानी भर दिया है।

  • मटर की फसल: मटर की बेलों में अत्यधिक नमी के कारण फंगस लगने और जड़ सड़न (root rot) जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। यदि धूप नहीं निकली तो फसल खेत में ही खराब हो सकती है, जिससे किसानों को भारी नुकसान होगा।
  • आलू की फसल: इसी तरह, आलू के खेतों में जलभराव से कंदों के गलने (rotting) की आशंका है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि स्थिति जल्द नहीं सुधरी, तो गुणवत्ता और उपज दोनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

स्पीति घाटी में भी चिंता:

हालांकि स्पीति घाटी लाहौल जितनी बारिश प्राप्त नहीं करती और यह एक ठंडा रेगिस्तान क्षेत्र है, फिर भी निचले इलाकों में हुई कुछ अधिक बारिश ने किसानों को चिंतित कर दिया है। जहाँ सिंचाई के लिए पानी कम मिलता है, वहाँ भी अधिक नमी से फसलों को नुकसान पहुंच सकता है।

बागवानों पर फंगल रोगों का खतरा:

लाहौल-स्पीति में बागवानी भी एक महत्वपूर्ण कृषि गतिविधि है, जिसमें सेब, खुबानी, और अन्य शीतकालीन फल उगाए जाते हैं।

  • सेब की फसल: बागवानों को सबसे ज़्यादा चिंता सेब की फसल पर है। लगातार नमी के कारण ‘स्कैब’ (scab) और अन्य फंगल रोगों के फैलने की आशंका बढ़ गई है, जिससे फलों की गुणवत्ता खराब हो सकती है। कीटनाशकों का छिड़काव भी बारिश के कारण प्रभावी नहीं हो पा रहा है।
  • अन्य फल: खुबानी और नाशपाती जैसी अन्य फलों की फसलों पर भी कीटों और बीमारियों का खतरा मंडरा रहा है।

आर्थिक प्रभाव और किसानों की मांग:

फसलों को हो रहा यह नुकसान सीधे तौर पर लाहौल-स्पीति के किसानों और बागवानों की आजीविका पर असर डालेगा। कई किसानों ने सरकार से सर्वे करवाकर उचित मुआवजे की मांग की है। कृषि और बागवानी विभाग के अधिकारी स्थिति पर नज़र रखे हुए हैं और किसानों को लगातार सलाह दे रहे हैं कि वे कैसे अपनी फसलों को बचाने के लिए उपाय कर सकते हैं, जैसे जल निकासी की व्यवस्था करना या रोग प्रतिरोधी छिड़काव करना जब मौसम खुले।

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