हिमाचल प्रदेश के दिल में बसा, देवभूमि का एक ऐसा ठिकाना जो सिर्फ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए ही नहीं, बल्कि अपने गहरे रहस्यों और अटूट आस्था के लिए भी मशहूर है – वो है कमरूनाग झील और मंदिर। मंडी जिले की सराज घाटी में स्थित यह पवित्र स्थल आपको एक ऐसी दुनिया में ले जाता है जहाँ पहाड़, घने जंगल और एक रहस्यमयी झील मिलकर एक अनोखा अनुभव देते हैं। यहाँ की हर कहानी, हर परंपरा आपको सोचने पर मजबूर कर देगी कि प्रकृति और आस्था का ऐसा अद्भुत मेल कहीं और नहीं।
देव कमरूनाग: आस्था, रोमांच और अनमोल रहस्य का अद्भुत संगम
हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में, सराज घाटी की ऊंची पहाड़ियों के बीच छुपा है एक बेहद खास और रहस्यमय ठिकाना – कमरूनाग झील और उसका प्राचीन मंदिर। समुद्र तल से करीब 10,000 फीट (3,100 मीटर) की ऊंचाई पर, ये जगह सिर्फ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए ही नहीं, बल्कि सालों पुराने उन रहस्यों के लिए भी जानी जाती है, जहाँ आस्था और प्रकृति एक साथ धड़कते हैं।
ये पवित्र जगह बारिश के देवता, श्री देव कमरूनाग को समर्पित है, जिन्हें स्थानीय लोग प्यार से ‘बड़ा देव’ या ‘बुढ़ा देव’ भी कहते हैं। यहां की झील में सोना, चांदी और बेशकीमती गहने चढ़ाने की एक अनोखी परंपरा है, जिसने इस जगह को और भी ज़्यादा रहस्यमय बना दिया है।
महाभारत से जुड़ा है कमरूनाग देवता का इतिहास
देव कमरूनाग को महाभारत के भीम पुत्र बर्बरीक का अवतार माना जाता है। कहानी कुछ यूं है कि कुरुक्षेत्र युद्ध से पहले, बर्बरीक ने ये प्रण लिया था कि वो हारने वाले पक्ष का साथ देंगे। भगवान कृष्ण को जब ये बात पता चली, तो उन्होंने बर्बरीक से उनका सिर दान में मांग लिया, ताकि वो कौरवों का साथ न दे पाएं। बर्बरीक ने खुशी-खुशी अपना सिर दे दिया, लेकिन उनकी आखिरी इच्छा थी कि वो पूरा युद्ध देखना चाहते थे। तब भगवान कृष्ण ने उनके सिर को एक ऊंची पहाड़ी पर स्थापित कर दिया, जहाँ से वो पूरा युद्ध देख सकें।
माना जाता है कि यही पहाड़ी बाद में कमरूनाग के नाम से पूजी जाने लगी। उन्हें बारिश का देवता कहते हैं, और यहाँ के लोगों का मानना है कि उनकी कृपा के बिना खेत-खलिहान में अच्छी फसल नहीं उगती।
झील और मंदिर की अनोखी परंपराएं, जो आपको हैरान कर देंगी!
कमरूनाग मंदिर और झील कई अद्भुत परंपराओं और गहरे रहस्यों के लिए मशहूर हैं:
- सोना-चांदी की झील: करोड़ों का खजाना! कमरूनाग झील की सबसे हैरान कर देने वाली बात ये है कि भक्त यहां सोना, चांदी के गहने, सिक्के और दूसरे कीमती आभूषण सीधे झील में डालते हैं। माना जाता है कि ये चढ़ावा सीधे देवता तक पहुँचता है और उन्हें खुश करता है। सदियों से चले आ रहे इस चढ़ावे की वजह से, ये झील अपने अंदर करोड़ों रुपये का खजाना समेटे हुए है। कहते हैं कि इस खजाने की रक्षा खुद नाग देवता करते हैं, और इसे निकालने की कोशिश करने वाला कभी कामयाब नहीं होता।
- खुले आसमान के नीचे विराजते हैं देव: यहाँ देवता की मूर्ति किसी मंदिर भवन में नहीं होती। देव कमरूनाग की लकड़ी की मूर्ति को हमेशा खुले आसमान के नीचे ही रखा जाता है, और पूजा भी खुले में ही होती है।
- पूजा का अनोखा अंदाज़: सिर्फ़ पुजारी ही देवता के पास जा सकते हैं, और आमतौर पर मूर्ति को कपड़े से ढका रखा जाता है। भक्त दूर से ही अपनी मन्नतें मांगते हैं।
- झीलों के रक्षक: कमरूनाग को हिमाचल प्रदेश की सभी छोटी-बड़ी झीलों का रक्षक देवता भी माना जाता है।
कमरूनाग ट्रेक: प्रकृति और रोमांच का बेजोड़ सफ़र
कमरूनाग झील और मंदिर तक पहुंचना भले ही थोड़ा चुनौतीपूर्ण ट्रेक है, लेकिन ये बेहद रोमांचक और यादगार होता है।
- शुरुआत कहाँ से: ये सफ़र मंडी जिले के रोहांडा गांव से शुरू होता है। रोहांडा तक आप सड़क मार्ग से आसानी से पहुँच सकते हैं।
- ट्रेक की दूरी: रोहांडा से कमरूनाग मंदिर तक का ट्रेक करीब 8 किलोमीटर का है। ये रास्ता घने जंगलों, घुमावदार पगडंडियों और पत्थरों से भरा हुआ है, जिसमें आपकी फिटनेस के हिसाब से 3 से 5 घंटे लग सकते हैं।
- नज़ारे जो दिल चुरा लें: रास्ते भर आपको देवदार के घने जंगल, रंग-बिरंगे फूलों की घाटियाँ और हिमालय के शानदार, मनमोहक नज़ारे देखने को मिलेंगे। जैसे-जैसे आप ऊपर चढ़ेंगे, हवा में एक अलग ही ताज़गी और सुकून महसूस होगा।
- बीच में रुकने की जगहें: ट्रेक के दौरान आपको कुछ छोटे ढाबे और स्थानीय लोग मिलेंगे जहाँ आप पानी पी सकते हैं या हल्का-फुल्का नाश्ता कर सकते हैं।
- मौसम कब बेहतर: ट्रेकिंग के लिए गर्मियों (मई से जून) और मॉनसून के बाद (सितंबर से अक्टूबर) का मौसम सबसे अच्छा रहता है। सर्दियों में (दिसंबर से मार्च) भारी बर्फबारी की वजह से रास्ता बंद हो जाता है।
कमरूनाग जाने का सबसे अच्छा समय
- मई से जून: ट्रेकिंग और हरियाली का मज़ा लेने के लिए ये सबसे बेहतरीन समय है। मौसम ठंडा और सुहावना रहता है।
- सितंबर से अक्टूबर: मॉनसून के बाद का ये समय भी शानदार है। आसमान साफ़ रहता है और चारों तरफ हरियाली छाई रहती है।
- ज्येष्ठ संक्रांति पर मेला: ज्येष्ठ संक्रांति (जो आमतौर पर जून के मध्य में पड़ती है) के मौके पर यहां एक बड़ा मेला लगता है। इस दौरान दूर-दूर से श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। अगर आप मंदिर की असली रौनक और आस्था को करीब से महसूस करना चाहते हैं, तो ये सबसे अच्छा समय है।
कमरूनाग मंदिर कैसे पहुँचें?
कमरूनाग झील और मंदिर तक पहुंचने के लिए रोहांडा तक सड़क मार्ग सबसे आसान है:
सड़क मार्ग:
- मंडी से रोहांडा: मंडी शहर से रोहांडा के लिए नियमित बसें और टैक्सी चलती हैं। मंडी से रोहांडा की दूरी लगभग 60-70 किलोमीटर है।
- कुल्लू/मनाली से: आप कुल्लू या मनाली से भी मंडी होते हुए रोहांडा पहुँच सकते हैं।
नज़दीकी रेलवे स्टेशन:
- जोगिंदरनगर रेलवे स्टेशन: ये सबसे नज़दीकी छोटा रेलवे स्टेशन है, जो मंडी से लगभग 50-60 किमी दूर है।
- चंडीगढ़/पठानकोट: अगर आप दूर से आ रहे हैं, तो चंडीगढ़ (करीब 200 किमी) या पठानकोट (करीब 210 किमी) सबसे बड़े रेलवे स्टेशन हैं। यहाँ से आप बस या टैक्सी से मंडी और फिर रोहांडा जा सकते हैं।
नज़दीकी हवाई अड्डा:
- भुंतर हवाई अड्डा (कुल्लू): ये सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा है, जो करीब 80-90 किलोमीटर दूर है। भुंतर से आप टैक्सी या बस से मंडी और फिर रोहांडा पहुँच सकते हैं।
कमरूनाग यात्रा के लिए कुछ खास टिप्स
- तैयार होकर चलें: आरामदायक ट्रेकिंग जूते, गर्म कपड़े (पहाड़ों में मौसम कभी भी बदल सकता है), रेनकोट, पानी की बोतल, फर्स्ट-एड किट और कुछ हल्के स्नैक्स अपने साथ ज़रूर रखें।
- गाइड ज़रूर लें: अगर आप पहली बार जा रहे हैं, तो रोहांडा से किसी स्थानीय गाइड को अपने साथ लेना बहुत फ़ायदेमंद हो सकता है। वो आपको सही रास्ते दिखाएगा।
- संभलकर चलें: रास्ते पर बहुत सावधानी से चलें, खासकर मॉनसून में जब फिसलन ज़्यादा होती है।
- पवित्रता का सम्मान करें: ये एक पवित्र जगह है, इसलिए यहां की परंपराओं और स्वच्छता का हमेशा सम्मान करें। झील या आसपास गंदगी न फैलाएं।
कमरूनाग तक पहुँचने के वैकल्पिक रास्ते
कमरूनाग तक पहुँचने के लिए कई ट्रेकिंग रूट्स हैं, जिनमें रोहांडा सबसे आम और प्रसिद्ध है। लेकिन हाँ, चेलचौक और थुनाग/जंजेहली से भी रास्ते हैं:
मंडी से चेलचौक (Chailchowk) होते हुए:
- मंडी से चेलचौक एक सड़क मार्ग है और यहाँ तक बसें और टैक्सियाँ आसानी से मिल जाती हैं। चेलचौक मंडी से लगभग 30-40 मिनट की दूरी पर है।
- चेलचौक से कमरूनाग तक के लिए एक वैकल्पिक ट्रेकिंग रूट है। कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि चेलचौक से देवधर (Devidarh) होते हुए एक नया रास्ता बना है जो ऊपर तक जाता है, और फिर वहाँ से ट्रेक कम हो जाता है (लगभग 1-2 घंटे का ट्रेक)।
- यह रास्ता उन लोगों के लिए एक विकल्प हो सकता है जो रोहांडा वाले सीधे और तेज़ ट्रेक से बचना चाहते हैं या कुछ अलग अनुभव चाहते हैं।
पंडोह (Pandoh) से थुनाग (Thunag) / जंजेहली (Janjehli) होते हुए:
- मंडी से पंडोह तक आसानी से पहुँचा जा सकता है, क्योंकि यह मनाली हाईवे पर है।
- पंडोह से थुनाग और फिर जंजेहली तक सड़क मार्ग से पहुँचा जा सकता है। थुनाग और जंजेहली सराज घाटी में स्थित हैं और अपने हरे-भरे परिदृश्यों के लिए जाने जाते हैं।
- जंजेहली से कमरूनाग तक भी एक ट्रेक रूट है। जंजेहली से कमरूनाग की दूरी लगभग 14-16 किमी बताई जाती है, जिसे तय करने में 5-7 घंटे लग सकते हैं। कुछ रिपोर्ट्स यह भी बताती हैं कि जंजेहली गांव से कमरूनाग मंदिर तक सड़क मार्ग से भी पहुंचा जा सकता है, जिसके लिए फोर-व्हील ड्राइव (जीप) की जरूरत पड़ सकती है, और अंतिम 500 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं।
- यह रास्ता लंबा और शायद थोड़ा ज़्यादा मुश्किल हो सकता है, लेकिन यह सराज घाटी की सुंदरता का अनुभव करने का एक शानदार अवसर प्रदान करता है।
आपका इंतज़ार कर रहा है एक अविस्मरणीय अनुभव!
कमरूनाग झील और मंदिर की यात्रा सिर्फ एक ट्रेक या तीर्थयात्रा नहीं है, बल्कि ये एक ऐसा अनुभव है जो आपको हिमाचल की गहरी संस्कृति, प्रकृति की भव्यता और अटूट आस्था से जोड़ देता है। चाहे आप रोमांच पसंद करते हों, आध्यात्मिक सुकून खोज रहे हों, या बस प्रकृति की गोद में कुछ पल बिताना चाहते हों, कमरूनाग आपको हमेशा याद रहने वाला एक अनुभव देगा। ये रहस्यमयी झील और शांत मंदिर आपको एक ऐसी दुनिया में ले जाएगा, जहाँ आस्था और प्रकृति एक साथ सांस लेते हैं।