पालमपुर में आवारा कुत्तों का आतंक: दहशत और वैक्सीन की कमी

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पालमपुर, हिमाचल प्रदेश का वो ख़ूबसूरत शहर जिसे अपनी शांत वादियों और मनमोहक दृश्यों के लिए जाना जाता है, अब एक गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है: आवारा कुत्तों का बढ़ता आतंक (growing menace of stray dogs)। यह सिर्फ़ एक छोटी-मोटी समस्या नहीं रही, बल्कि इसने यहाँ के स्थानीय निवासियों और यहाँ आने वाले पर्यटकों के जीवन में डर (fear), असुरक्षा (insecurity) और गहरी निराशा (frustration) घोल दी है। स्थिति की गंभीरता ऐसी है कि शहर की पहचान पर भी सवाल उठने लगे हैं।

बढ़ते आँकड़े: कुत्ते के काटने के मामलों में भयावह वृद्धि

पिछले दो सालों के आँकड़े इस समस्या की भयावहता को साफ़ दर्शाते हैं। पूरे हिमाचल प्रदेश में 1,000 से अधिक कुत्ते के काटने के मामले (over 1,000 dog bite cases) सामने आए हैं, और इनमें से 200 से ज़्यादा मामले (more than 200 cases) अकेले कांगड़ा ज़िले के हैं, जिसका पालमपुर एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ये सिर्फ़ आँकड़े नहीं हैं, बल्कि हर एक संख्या के पीछे एक व्यक्ति की दर्दनाक कहानी है – बच्चों का खेलते हुए घायल होना, बुजुर्गों का अपनी सुबह की सैर छोड़ देना, या आम राहगीरों का हर मोड़ पर चौकन्ना रहना। सड़कों पर आवारा कुत्तों के झुंड अब एक आम नज़ारा बन गए हैं, और उनका आक्रामक व्यवहार लोगों को घरों में दुबकने पर मजबूर कर रहा है। कई बार ये कुत्ते अचानक हमला कर देते हैं, जिससे गंभीर चोटें आती हैं और मनोवैज्ञानिक आघात भी लगता है।

जानलेवा कमी: एंटी-रेबीज वैक्सीन का अभाव

इस विकट स्थिति को और भी बदतर बना रही है एंटी-रेबीज वैक्सीन (ARV) की गंभीर कमी। रेबीज एक घातक बीमारी है जिसका इलाज अगर समय पर न हो, तो यह जानलेवा साबित होती है। कुत्ते के काटने के तुरंत बाद वैक्सीन की कई खुराक लेना अनिवार्य होता है, लेकिन पालमपुर और कांगड़ा के कई सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में इस जीवनरक्षक वैक्सीन की पर्याप्त आपूर्ति (adequate supply) नहीं है। इसका सीधा असर पीड़ितों पर पड़ता है, जिन्हें या तो वैक्सीन के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ता है, या फिर निजी क्लीनिकों का रुख करना पड़ता है जहाँ इसकी कीमत कई गुना ज़्यादा होती है। यह स्थिति न सिर्फ़ आर्थिक बोझ बढ़ाती है, बल्कि पीड़ित के जीवन को भी जोखिम में डाल देती है। स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों का कहना है कि सप्लाई चेन में दिक्कतें आ रही हैं, लेकिन लोगों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।

पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर सीधा असर

पालमपुर अपनी प्राकृतिक सुंदरता, चाय बागानों और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है, जो हर साल हज़ारों पर्यटकों को आकर्षित करता है। लेकिन आवारा कुत्तों का बढ़ता आतंक अब यहाँ के पर्यटन उद्योग (tourism industry) के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। पर्यटकों द्वारा कुत्तों के काटने की घटनाओं की बढ़ती रिपोर्टें शहर की छवि को धूमिल कर रही हैं। कई पर्यटक अब पालमपुर आने से हिचकिचा रहे हैं, जिससे स्थानीय व्यवसायों (businesses) जैसे होटल, रेस्टोरेंट और स्थानीय दुकानों पर सीधा नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। पर्यटन यहाँ की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण आधार है, और इस समस्या का समाधान न होने पर हज़ारों लोगों की आजीविका प्रभावित हो सकती है। स्थानीय होटल एसोसिएशन ने प्रशासन से इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है।

समस्या की जड़ें और आगे का रास्ता

आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या के पीछे कई कारण हैं। अव्यवस्थित कचरा प्रबंधन (unmanaged waste disposal) एक प्रमुख कारण है, क्योंकि कचरे के ढेर इन कुत्तों को भोजन का आसान स्रोत प्रदान करते हैं। इसके अलावा, कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण कार्यक्रमों (dog sterilization and vaccination programs) का प्रभावी ढंग से लागू न होना भी एक बड़ी वजह है। कई बार फंड की कमी या योजनाबद्ध तरीक़े से काम न हो पाने के कारण ये कार्यक्रम सफल नहीं हो पाते।

इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है:

  • तत्काल नसबंदी और टीकाकरण अभियान: बड़े पैमाने पर और नियमित नसबंदी (sterilization) तथा टीकाकरण (vaccination) अभियान चलाए जाएँ ताकि कुत्तों की आबादी को नियंत्रित किया जा सके और रेबीज के प्रसार को रोका जा सके।
  • वैज्ञानिक कचरा प्रबंधन: शहर में कचरा प्रबंधन (waste management) प्रणाली को सुधारना अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि आवारा कुत्तों को भोजन के स्रोत उपलब्ध न हों। कूड़ेदानों को ढका हुआ रखना और नियमित रूप से कचरा उठाना ज़रूरी है।
  • वैक्सीन की पर्याप्त उपलब्धता: स्वास्थ्य विभाग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एंटी-रेबीज वैक्सीन (ARV) की पर्याप्त आपूर्ति हर समय उपलब्ध रहे और ज़रूरतमंदों को आसानी से और मुफ्त में मिल सके।
  • जनजागरूकता अभियान: लोगों को आवारा कुत्तों के प्रति सुरक्षित व्यवहार, उन्हें भोजन न देने और कुत्ते के काटने की स्थिति में तुरंत क्या कदम उठाने चाहिए, इसके बारे में शिक्षित करना ज़रूरी है।
  • प्रशासनिक इच्छाशक्ति: स्थानीय प्रशासन को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना होगा और पशु कल्याण संगठनों के साथ मिलकर एक दीर्घकालिक और प्रभावी समाधान योजना तैयार करनी होगी।

पालमपुर को अपने पुराने गौरव और शांति को वापस पाने के लिए इन आवारा कुत्तों के आतंक से मुक्त होना अत्यंत आवश्यक है। यह न केवल निवासियों की सुरक्षा के लिए, बल्कि शहर के आर्थिक और सामाजिक ताने-बाने के लिए भी महत्वपूर्ण है।

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