नया भवन शुरू होने से बिस्तरों की संख्या 50 से बढक़र 200 हो जाती। 44 करोड़ से बने जीएस बाली मदर एंड चाइल्ड अस्पताल में रैंप के लिए अलग से तीन करोड़ 31 लाख की राशि भी जारी हो चुकी है, परंतु अभी तक रैंप का कार्य अधूरे में लटका हुआ है। विवादों में घिरे इस भवन का उद्घाटन होने के बावजूद अधूरा निर्माण कार्य जारी है।
निर्माण योजनाओं वाला अस्पताल विवादों में उलझा (Construction Controversy)
डॉ. राजेंद्र प्रसाद आयुर्विज्ञान चिकित्सा महाविद्यालय, टांडा के नवनिर्मित जीएस बाली मदर एंड चाइल्ड हॉस्पिटल को लगातार नए विवादों का सामना करना पड़ रहा है—इसी कड़ी में बिना रैंप के फायर एनओसी जारी करने का सवाल उठा है।
रैंप नहीं → फायर एनओसी कैसे? (No Ramp, Yet Fire NOC?)
₹44 करोड़ की लागत वाले इस भवन का उद्घाटन पिछले साल हुआ, लेकिन रैंप का निर्माण अब तक नहीं हुआ है। इस स्थिति में यह विवाद उठता है कि अग्निशमन विभाग ने बिना रैंप के कैसे एनओसी जारी किया?
मरीजों की दिक्कतें बढ़ीं—दो महिलाएं एक बिस्तर पर (Patient Woes: Shared Beds)
अधूरे निर्माण के कारण स्थानीय गर्भवती महिलाएं अभी भी टांडा अस्पताल में 50 बेड शेयर कर रही हैं। डिलीवरी के बाद स्ट्रेचर पर रात बिताने और एक बिस्तर पर दो महिलाओं के लिए मजबूर होना मजबूरी बनी हुई है।
छह साल बाद भी अधूरा काम और बढ़ता खर्च (Six-Year Delay & Rising Cost)
₹44 करोड़ की मूल लागत के अलावा रैंप निर्माण के लिए ₹3.31 करोड़ अलग से जारी किए जा चुके हैं, लेकिन छह साल बाद भी रैंप अधूरा है। यह एक्स्ट्रा खर्च भी सरकार पर पड़ा है, जो तालमेल की कमी और गलत अनुमानियों का परिणाम है।
स्वास्थ्य मंत्री के आदेश पर अब भी काम अधूरा (Minister’s Order Ignored)
स्वास्थ्य मंत्री कर्नल डॉ. धनीराम शांडिल ने छह महीने के भीतर रैंप बनाने का आदेश जारी किया था, लेकिन कार्य अब तक शुरू नहीं हो पाया। दिव्य हिमाचल ने बिल्डिंग की दरारों, टूटे दरवाज़ों और फायर एनओसी के मुद्दों को गंभीरता से उठाया था।