हिमाचल में बनी 50 दवाएं निकलीं सब-स्टैंडर्ड, स्वास्थ्य के लिए खतरनाक

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हिमाचल प्रदेश में निर्मित 50 दवाएं जांच में सब-स्टैंडर्ड पाई गई हैं। विशेषज्ञों ने इन्हें सेवन योग्य नहीं बताया है। यह मामला प्रदेश की फार्मा इंडस्ट्री पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।

50 दवाएं फेल, हिमाचल की फार्मा इंडस्ट्री पर उठे सवाल

केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) और राज्य दवा नियामकों की मई माह की जांच रिपोर्ट में हिमाचल प्रदेश के 37 फार्मा उद्योगों में तैयार 50 दवाएं गुणवत्ता मानकों पर फेल हो गई हैं। इन दवाओं में बुखार, एसिडिटी, अल्सर, हाई बीपी, सूजन, हृदय रोग और आर्थराइटिस के इलाज में प्रयोग होने वाली मेडिसिन शामिल हैं।

बद्दी, नालागढ़, सोलन समेत कई क्षेत्रों के उद्योगों में तैयार हुईं दवाएं

जिन दवाओं के सैंपल फेल हुए हैं, वे हिमाचल के बद्दी, बरोटीवाला, नालागढ़, कालाअंब, सोलन, पांवटा साहिब, ऊना और कांगड़ा क्षेत्रों में स्थित फार्मा कंपनियों द्वारा बनाई गई थीं। राज्य दवा नियंत्रक ने सभी संबंधित कंपनियों को नोटिस जारी करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

देशभर में कुल 186 दवाएं फेल, दो दवाएं नकली

CDSCO की ओर से मई माह का ड्रग अलर्ट जारी किया गया है, जिसमें देशभर में कुल 186 दवाएं गुणवत्ता जांच में फेल पाई गईं। इनमें से दो दवाओं को नकली घोषित किया गया है। हिमाचल में बनी 19 दवाएं CDSCO लैब में सब-स्टैंडर्ड पाई गईं, जबकि राज्यों की लैब्स में 31 और दवाएं फेल हुईं।

ये दवाएं नहीं हैं खाने लायक

गुणवत्ता जांच में जिन दवाओं को असुरक्षित घोषित किया गया है, उनमें शामिल हैं:

  • एंटीबायोटिक दवाएं: ओफ्लॉक्सासिन टैबलेट्स, अमॉक्सिसिलिन-पोटेशियम क्लैवुलेनेट
  • विटामिन सप्लीमेंट्स और सिरप: फोलिक एसिड सिरप
  • दर्द और सूजन की दवाएं: एसिक्लोफेनैक-पैरेसिटामोल टैबलेट्स
  • अन्य: सेफिक्सिम पाउडर, रूमीहील डी, इट्राकोनाजोल, ओर्निडाजोल, क्लोबेटासोल क्रीम

इंजेक्शन और खांसी की सिरप भी फेल

ड्रग अलर्ट के अनुसार, कुछ इंजेक्शन और खांसी की सिरप भी गुणवत्ता जांच में फेल हुई हैं। इनमें एक्टिव कंटेंट की कमी, अनुचित pH स्तर, गलत लेबलिंग और डिसइंटिग्रेशन टेस्ट में असफलता जैसे गंभीर निर्माण दोष पाए गए हैं।

ड्रग कंट्रोलर ने दिए कड़ी जांच के आदेश

राज्य दवा नियंत्रक मनीष कपूर ने बताया कि जिन उद्योगों की दवाएं फेल हुई हैं, उन्हें नोटिस भेजकर बाजार से दवाएं हटाने को कहा गया है। जिन इकाइयों के नाम बार-बार ड्रग अलर्ट में आ रहे हैं, उनका जोखिम आधारित निरीक्षण कर खामियों की पहचान की जाएगी।

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