शांता कुमार की सलाह: आलोचना के साथ अच्छे काम की सराहना भी ज़रूरी

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पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने सुझाव दिया कि केवल आलोचना ही नहीं, बल्कि अच्छे काम की सराहना भी की जानी चाहिए।

 सकारात्मकता की ज़रूरत: विपक्ष और सरकार दोनों की सराहना करें

भाजपा के वरिष्ठतम नेता और पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने कहा कि लोकतंत्र में आलोचना जितनी ज़रूरी है, उतनी ही ज़रूरी है अच्छे कार्यों की सराहना करना। उन्होंने स्पष्ट किया कि चाहे वह सरकार हो या विपक्ष, अगर कोई अच्छा काम कर रहा है तो उसे खुले दिल से सराहा जाना चाहिए। बिना पक्षपात के सकारात्मक कार्यों को मान्यता देना एक स्वस्थ लोकतांत्रिक संस्कृति की पहचान है।

विरोध की आदत बनी राजनीति की कमजोरी

शांता कुमार ने अफसोस जताया कि आज की राजनीति में विरोध एक प्रवृत्ति बन गई है—बिना तर्क या तथ्यों के केवल विरोध के लिए विरोध किया जाता है। उन्होंने इसे लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक संकेत बताया और कहा कि यह प्रवृत्ति राजनीति में गुणवत्ता और संतुलन को नुकसान पहुँचा रही है।

टांडा अस्पताल पर कड़ी टिप्पणी पहली बार

अपने बयान में शांता कुमार ने यह भी साझा किया कि अपने दशकों लंबे राजनीतिक करियर में पहली बार उन्होंने टांडा मेडिकल कॉलेज और हिमाचल में बनी दवाओं को लेकर इतनी कड़वी और तल्ख टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि यह निर्णय उन्होंने हल्के में नहीं लिया था, बल्कि हालात की गंभीरता ने उन्हें ऐसा बोलने को मजबूर किया।

 स्वास्थ्य मंत्री शांडिल की प्रतिक्रिया सराहनीय

शांता कुमार ने इस बात पर खुशी जाहिर की कि स्वास्थ्य मंत्री कर्नल धनीराम शांडिल ने उनकी आलोचना का सकारात्मक और गरिमापूर्ण जवाब दिया। उन्होंने जिस उदार हृदय और समझदारी से प्रतिक्रिया दी, वह आज की राजनीति में दुर्लभ है। शांता कुमार ने इसके लिए उनका आभार व्यक्त किया।

कांग्रेस की अच्छी पहलें भी सराहीं

पूर्व मुख्यमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि वह केवल आलोचना नहीं करते, बल्कि हिमाचल कांग्रेस की कई अच्छी पहलों की खुलकर प्रशंसा भी कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि जब कोई अच्छा काम करता है, तो पार्टी भले ही विपक्ष की हो, उसे श्रेय देना चाहिए।

सभी नेताओं को दी सलाह: प्रशंसा में न करें कंजूसी

अंत में शांता कुमार ने सभी नेताओं से आग्रह किया कि वे राजनीति में सिर्फ आलोचना के बजाय सराहना का संतुलन बनाए रखें। उन्होंने कहा कि अच्छी बातों की प्रशंसा करने में संकोच नहीं करना चाहिए और आलोचना भी तब ही करनी चाहिए जब उसमें सार्थकता और उद्देश्य हो, केवल विरोध की मानसिकता नहीं।

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