कोलडैम जलाशय में जल्द ही महाशीर मछली (Mahseer fish) का व्यवस्थित उत्पादन शुरू किया जाएगा। मत्स्य विभाग ने इस दिशा में पहल करते हुए योजना बनाई है कि जलाशय को मछली पालन के हब के रूप में विकसित किया जाए।
यह पहल न केवल स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध कराएगी, बल्कि क्षेत्र की आर्थिक स्थिति और जलजीव विविधता (aquatic biodiversity) को भी बेहतर बनाएगी। विभाग का मानना है कि कोलडैम का अनुकूल वातावरण महाशीर के सफल पालन (successful breeding) के लिए उपयुक्त है।
महाशीर मछली अब कोलडैम में केज कल्चर का हिस्सा
भारत और दक्षिण एशियाई देशों में पाई जाने वाली महाशीर मछली अब कोलडैम जलाशय में केज कल्चर (Cage Culture) की शोभा बढ़ाएगी। एंगलिंग के शौकीनों की पसंदीदा यह मछली अब हिमाचल प्रदेश के मत्स्य विभाग की विशेष योजना के तहत प्रायोगिक रूप से पालने के लिए तैयार है।
प्रारंभिक चरण में लगभग 2000 बीज जलाशय में डाले जाएंगे। यदि यह प्रयोग सफल रहता है, तो भविष्य में महाशीर का large-scale production शुरू किया जाएगा। इससे एंगलिंग टूरिज्म (Angling Tourism) को भी बढ़ावा मिलेगा।
ट्राउट की सफलता के बाद अब महाशीर की बारी
मत्स्य विभाग के ज्वाइंट डायरेक्टर पवन कुमार शर्मा और सहायक निदेशक डॉ. सोमनाथ ने बताया कि कोलडैम जलाशय में पहले ही 24 केज लगाए जा चुके हैं। इनमें रेनबो ट्राउट (Rainbow Trout) मछली का सफल उत्पादन किया गया। पिछले साल अच्छे उत्पादन के बाद इस बार 10,000 ट्राउट बीज डाले गए, जिनमें से 7000 मछलियां बिक्री के लिए तैयार हो चुकी हैं।
अब इस सफलता को देखते हुए केज में महाशीर उत्पादन की योजना को हरी झंडी दी गई है।
महाशीर: मछलियों का बाघ
महाशीर मछली को अक्सर “Tiger of the freshwater” कहा जाता है। यह मछली न केवल ताकतवर और फुर्तीली होती है, बल्कि इसका खेल, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व भी है। इसका मांस बाजार में महंगे दामों पर बिकता है और व्यावसायिक मत्स्य आखेट में भी लोकप्रिय है।
हिमाचल प्रदेश सरकार ने महाशीर को राज्य मछली (State Fish) का दर्जा दिया है। यह भारत, नेपाल, भूटान समेत मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देशों में पाई जाती है।