हमीरपुर (हिमाचल) समाचार: खाना एक वक्त ही मिले, लेकिन सम्मान और शांति जरूरी

हमीरपुर (हिमाचल) समाचार: खाना एक वक्त ही मिले, लेकिन सम्मान और शांति जरूरी

हमीरपुर में स्थानीय लोगों ने कहा है कि भले ही खाना केवल एक बार मिले, लेकिन सम्मान और शांति का माहौल बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। इस मुद्दे पर उन्होंने अपनी चिंताओं को साझा करते हुए बताया कि सामाजिक समरसता और आपसी सम्मान की आवश्यकता है।

स्थानीय निवासियों का मानना है कि सिर्फ भोजन की उपलब्धता ही नहीं, बल्कि एक सम्मानजनक और शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए ये मूलभूत तत्व हैं। उन्होंने प्रशासन से इस दिशा में ठोस कदम उठाने की अपील की है ताकि सभी को उचित सम्मान और शांति मिल सके।

74 वर्षीय शिवदत्त, जो कांगड़ा के इंदौरा निवासी हैं, वृद्ध आश्रम में अपने बाकी के पल बिता रहे हैं। उन्होंने साहिर लुधियानवी की पंक्तियों से अपने दिल का दर्द बयां किया: “वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन, उसे इक ख़ूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा।” यह पंक्ति न केवल उनकी स्थिति का वर्णन करती है, बल्कि समाज की उस सच्चाई का भी आइना है, जो बुजुर्गों को उम्र के इस पड़ाव पर भुला देती है।

समय: 01:17। स्थान: दरिद्र नारायण कल्याण समिति वृद्ध आश्रम, हीरानगर। इस आश्रम का संचालन साढ़े तीन वर्ष से मिलाप सिंह कर रहे हैं, जो शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त हुए हैं। इन दिनों श्राद्ध के अवसर पर आश्रम में चहल-पहल बढ़ गई है, जहां लोग बुजुर्गों को भोजन खिलाने आते हैं।

यहां एक महिला और 10 पुरुष बुजुर्ग हैं। कुछ बुजुर्ग किसी आयोजन में भोजन के लिए गए हैं। सरकारी गाड़ी से आए अधिकारियों और कुछ महिलाओं ने तीन से चार बुजुर्गों को खाना खिलाया और कपड़े भी दिए। माहौल सामान्य है, लेकिन बुजुर्गों के चेहरे पर शून्यता स्पष्ट झलक रही है।

02:07 बजे, भोजन के बाद बुजुर्ग कुछ देर आराम करने के लिए बाहर कुर्सियों पर बैठे हैं। जब उनसे पूछा गया तो शिवदत्त ने कहा, “मेरे लिए उम्र के इस पड़ाव पर, चाहे खाना एक वक्त का मिले, लेकिन सम्मान और शांति जरूरी है। खुशी भोजन में नहीं, बल्कि बच्चों से मिलने वाले सम्मान में होती है।”

उन्होंने बताया कि वह अपने बच्चों—बेटा, बहू, और पोता-पोती—से बहुत प्यार करते हैं और शायद वे भी उन्हें करते हैं। “प्यार और सम्मान में अंतर ही फासले बढ़ा रहा है।” उन्होंने किन्नौर के पूह में तीस साल कारोबार किया, और अब यहां जीवन बिता रहे हैं।

श्राद्ध के दौरान आश्रम में बढ़ी भीड़ के सवाल पर उन्होंने शायराना अंदाज में कहा, “उम्र जलवों में बसर हो ये ज़रूरी तो नहीं, नींद तो दर्द के बिस्तर पर भी आ सकती है।”

हालांकि शिवदत्त खिलखिला रहे हैं, लेकिन उनके आस-पास बैठे बुजुर्गों की आंखों में नमी स्पष्ट रूप से दिख रही है।

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